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ति॒स्रो दे॒वीर्ब॒र्हिरेदꣳ स॑द॒न्त्विडा॒ सर॑स्वती॒ भार॑ती। म॒ही गृ॑णा॒ना ॥१९ ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

ति॒स्रः। दे॒वीः। ब॒र्हिः। आ। इ॒दम्। स॒द॒न्तु॒। इडा॑। सर॑स्वती। भार॑ती। म॒ही। गृ॒णा॒ना ॥१९ ॥

यजुर्वेद » अध्याय:27» मन्त्र:19


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर मनुष्यों को कैसी वाणी का सेवन करना चाहिये, इस विषय को अगले मन्त्र में कहा है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे मनुष्यो ! तुम लोग जो (मही) बड़ी (गृणाना) स्तुति करती हुई (इडा) स्तुति करने योग्य (सरस्वती) प्रशस्त विज्ञानवाली और (भारती) सब शास्त्रों को धारण करने हारी जो (तिस्रः) तीन (देवीः) चाहने योग्य वाणी (इदम्) इस (बर्हिः) अन्तरिक्ष को (आ, सदन्तु) अच्छे प्रकार प्राप्त हों, उन तीनों प्रकार की वाणियों को सम्यक् जानो ॥१९ ॥
भावार्थभाषाः - जो मनुष्य व्यवहार में चतुर सब शास्त्र की विद्याओं से युक्त सत्यादि व्यवहारों को धारण करने हारी वाणी को प्राप्त हों, वे स्तुति के योग्य हुए महान् होवें ॥१९ ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनर्मनुष्यैः कीदृशी वाणी सेवनीया इत्याह ॥

अन्वय:

(तिस्रः) त्रित्वसंख्याकाः (देवीः) कमनीयाः (बर्हिः) अन्तरिक्षम्। (आ) समन्तात् (इदम्) (सदन्तु) प्राप्नुवन्तु (इडा) स्तोतुमर्हा (सरस्वती) प्रशस्तविज्ञानवती (भारती) सर्वशास्त्रधारिणी (मही) महती (गृणाना) स्तुवन्ती ॥१९ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे मनुष्याः ! यूयं या मही गृणानेडा सरस्वती भारती च तिस्रो देवीरिदं बर्हिरासदन्तु ताः सम्यग्विजानीत ॥१९ ॥
भावार्थभाषाः - ये मनुष्या व्यवहारकुशलां सर्वशास्त्रविद्यान्वितां सत्यादिव्यवहारधर्त्रीं वाणीं प्राप्नुयुस्ते स्तुत्याः सन्तो महान्तो भवेयुः ॥१९ ॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - जी माणसे व्यवहार चतुर, सर्व शास्रविद्येत कुशल असून त्यांची वाणी सत्य व्यवहार समजणारी असते ती माणसे प्रशंसनीय व श्रेष्ठ असतात.